यदि मैं पुलिस अधिकारी होता – आत्‍मकथात्‍मक निबंध ( If I Were a Police Officer – Autobiographical Essay )

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यदि मैं पुलिस अधिकारी होता (If I Were a Police Officer – Autobiographical Essay)

हर मनुष्य के मन में कुछ बनने, कुछ करने की इच्छा हुआ ही करती है । कोई डॉक्टर वनना चाहता है, कोई इंजीनियर, कोई अध्यापक बनना चाहता है और कोई प्राध्यापक । कोई नेता बनना चाहता है और कोई अभिनेता । कोई व्यापारी बनना चाहता है, तो कोई बहुत ऊँचा अधिकारी। जिस व्यक्ति का जैसा भाव, स्वभाव और घर का वातावरण होता है, वैसा ही कुछ वह बनना चाहता है ! मेरे मन में भी अपने समाज के लिए कुछ करने की इच्छा है । मुझे क्योंकि स्वभाव से ही न्याय, व्यवस्था और सभी की सुरक्षा से प्यार है, इस कारण अपनी पढ़ाई-लिखाई पूरी करने के बाद भारतीय पुलिस व्यवस्था का एक अंग बनना चाहता हूँ ! यह ठीक है कि आजकल पुलिस का विभाग बहुत बदनाम हो चुका है। आम लोग इस विभाग को जन-जीवन का रक्षक नहीं बल्कि भक्षक मानने लगे हैं। अच्छे-भले लोग पुलिस के छोटे-बड़े कर्मचारी को देखते ही नाक-भौं सिकोड़ लिया करते हैं शायद इस सब को देखकर भी मेरी इच्छा बढ़ जाती है कि मैं पुलिस का अधिकारी ही बनूँ । ऐसा बन कर इस तरह के कार्य करूँ, कि पुलिस के माथे पर जितनी तरह के भी कलंक लगे हुए हैं, उन्हें धो डालूँ !

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आप पूछ सकते हैं कि यदि मैं सचमुच पुलिस अधिकारी बना दिया जाऊँ, तो क्या-क्या करूँगा? मेरे मन में जो कुछ भी है, मैं उसे स्पष्ट रूप से कह देना चाहता हूँ ! यदि मैं पुलिस अधिकारी होता, तो अपने व्यवहार से सबसे पहले जनता के मन में बसे इस विश्वास को दूर करने का प्रयत्न करता कि पुलिस वाले बुरे होते हैं, इस कारण उनसे डरकर रहना चाहिए ! मेरे अधिकार में जो और जितना क्षेत्र होता, वहाँ के हर आदमी से मिलकर मैं उन्हें समझाता कि वास्तव में हमारा विभाग जनता का दुश्मन नहीं बल्कि मित्र है । पुलिस को जो जनता का भक्षक बना और मान लिया गया है, अपने कार्य-व्यवहारों से मैं इस प्रकार की मान्यता को भी दूर करने की कोशिश करता। अपने और अपने सहकर्मियों के व्यवहार से सिद्ध कर देता कि पुलिस विभाग का गठन सबकी सेवा- सुरक्षा के लिए किया गया है। उसका कर्त्तव्य अन्याय-अत्याचार से पीड़ित, समाज-विरोधी तत्त्वों से आतंकित लोगों की रक्षा करने के लिए है । उन्हें न्याय और उचित व्यवस्था देने के लिए है । इस प्रकार पुलिस जनता को रक्षक है, भक्षक नहीं !

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आम लोगों की यह धारणा बन चुकी है कि पुलिस का संरक्षण पाकर ही गली-मुहल्लों में समाज-विरोधी और गुण्डे तत्त्व बेरोक-टोक उत्पात मचाते फिरते हैं । इस तरह के लोग जिसे मर्ज़ी मार-पीट दिया करते, जिसे चाहा लूट लेते और इस प्रकार अपने आतंक का राज चलाया करते हैं। ऐसे लोगों के सामने अगर कोई शरीफ आदमी पुलिस का नाम ले देता है, तो वे और भी अकड़ कर बड़े गर्व से कहा करते हैं — “ अरे जा जा ! पुलिस को नहीं, प्रधानमंत्री से शिकायत कर दे जाकर ! बहुत देखे हैं पुलिस वाले । बड़े-बड़े फन्ने खाँ पुलिस अधिकारी हर समय मेरी जेब में भरे रहते हैं !” यदि मैं पुलिस अधिकारी होता, तो ऐसे लोगों को उनकी असली जमीन सुँघा देता। उन्हें अच्छी तरह समझा देता कि शरीफ जनों की रक्षा के लिए बना पुलिस विभाग गुण्डों की जेब में रहने वाला नहीं होता, बल्कि उन्हें जेल के सीखचों के पीछे रखने वाला हुआ करता हैं । जो लोग यह कहते नहीं थकते कि छोटे-बड़े हर पुलिस वाले की अपनी-अपनी कीमत होती है । किसी का ईमान पचास रुपये में बिकता है, तो किसी का सौ में । दुगुने – तिगुने रुपये दिखाकर तो बड़े-से-बड़े ईमानदार बनने वाले पुलिसिये भी खरीदा जा सकता है। यदि मैं पुलिस का अधिकारी होता – चाहे छोटा, चाहे बड़ा, तो ऐसे लोगों को भली प्रकार जता देता कि ईमान कोई बेचने – खरीदने वाली चीज़ नहीं। सच्चा मनुष्य प्राणों की बाजी तो लगा सकता है, मर भी सकता है, पर ईमान नहीं बेच सकता ! दूसरों का ईमान खरीदने की डींगे हाँकने वाले ऐसे नीच लोगों को मैं जेल की काल कोठरी में बन्द करवा के ही दम लेता !

लोग कहते हैं कि हम जेबकतरे पकड़ कर पुलिस के हवाले करते हैं, पर कुछ ही देर बाद वे फिर से इलाके में छुट्टे घूम रहे होते हैं। चोरों उठाईगीरों को पकड़वाने का परिणाम भी ऐसा ही होता है । लोगों का मानना है कि इस प्रकार के लोगों के अनैतिक धंधे में पुलिस वालों का भी हिस्सा रहता है। तभी तो पुलिस इनके विरुद्ध कड़ी कार्यवाही नहीं किया करती। पकड़कर लाने वालों की आँखों में धूल झोंक ऐसे लोगों को छोड़ दिया करती है । आप लोग समाचारपत्रों में बनावटी और विषैली शराब पीकर मरने वालों के  समाचार पढ़ते रहते हैं। सभी का यह मानना है कि नकली शराब बनाकर बेचने का यह काला-धन्धा भी पुलिस की देख-रेख में ही चला करता है ! पुलिस सब जानती है कि उसके इलाके में इस प्रकार के अनैतिक धंधे कौन-कौन करते हैं, कहाँ-कहाँ करते है । लेकिन वह इन सब के विरुद्ध कुछ नहीं करती। इसलिए नहीं करती कि उसका हिस्सा हर महीने अपने-आप ही उसके पास पहुँच जाया करता है । निश्चय ही इस प्रकार के आरोपों में काफी सचाई भी है। आप विश्वास करें, यदि मैं पुलिस अधिकारी होता, तो कम-से-कम अपने इलाके में तो लोगों को इस तरह के आरोप लगाने और दोषारोपण करने का अवसर न देता ! मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि जिस बेचारे की जेब कट जाती है, परदेश में सामान उठ जाता है, उसके मन की दशा क्या होती है ! मैं स्वयं अपनी जेब कटवा कर इस कष्ट को भोग चुका हूँ। रास्ते में सामान उठ जाने के कारण क्या कष्ट होता है, अपने एक प्रिय रिश्तेदार के मुख से वह सब सुन और अनुभव कर चुका हूँ। शराब मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए तो हानिकारक है ही, घरों को भी बरबाद कर दिया करती है । फिर नकली और ज़हरीली शराब – तोबा ! भगवान बचाये उसकी यातना से! उसे पीकर तड़प कर मरते, जीवित रहने पर अन्धे होते हुए मैने स्वयं अपनी आँखों से लोगों को देखा है ! इस कारण यदि मैं पुलिस अधिकारी होता, तो कम-से-कम अपने इलाके में इस प्रकार के ग़लत और नाशकारी काम कतई नहीं होने देता ! इस प्रकार के कार्य करने वालों का नाम – निशान तक साफ कर देता ! अपने व्यवहार और कार्यों से इस प्रकार के धन्धे करने वालों को विवश कर देता कि या तो वे सुधर जाएँ, या फिर जेल में चक्की पीसने को तैयार रहें ।

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नगरों-महानगरों में आजकल वाहनों की भीड़ रहती है। लोग जहाँ-तहाँ अपने सभी प्रकार के वाहन खड़े करके तो दुर्घटनाओं के अवसर उपस्थित कर ही दिया करते हैं, अन्धाधुन्ध वाहन चला कर भी कई प्रकार की दुर्घटनाएँ करते रहते हैं । कहा जाता है कि वाहन चालकों को बिना उचित परीक्षा के ही लाइसैन्स दे दिये जाते हैं। ट्रैफिक पुलिस वाले ‘पुराने हो चुके वाहनों को रोकते नहीं । यातायात व्यवस्था पर उचित ध्यान नहीं देते । दुर्घटनाएँ हाकर भी उनकी तरफ से मुँह मोड़ लिया करते हैं ! इससे दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति तड़प-तड़प कर सड़क पर ही मर जाता है, पर पुलिस वाले जान-बूझ कर भी टाल जाते हैं। इसे मैं नैतिकता की कमी और कर्तव्य पालन की उपेक्षा मानता हूँ । यदि मैं पुलिस अधिकारी होता, तो पुलिस विभाग में काम करने वाली खो चुकी नैतिकता को फिर से जगाने का प्रयास करता । उसे चुस्त-दुरुस्त बनाकर यातायात नियंत्रण के मोर्चे पर इस प्रकार लगाता कि सभी प्रकार की दुर्घटनाएँ होना अपने-आप ही बन्द हो जातीं । इसी प्रकार तरह-तरह के नशीले पदार्थों की बिक्री, वेश्यावृत्ति आदि को भी पुलिस संरक्षण मिलने का आरोप लगाया जाता है। इनको एकदम झुठलाया नहीं जा सकता। मेरा प्रयास होता कि ऐसे अनैतिक लोगों से स्वयं पुलिस विभाग और जनता दोनों को छुटकारा मिल सके ! जहाँ कहीं भी मुझे कोई बुराई दीख पड़ती, अपने कर्तव्य और सीमा का ध्यान रखते हुए, मैं उसे अवश्य ही दूर करने का प्रयत्न करता !

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नैतिकता का ह्रास ही वास्तव में आज जीवन – समाज के अन्य हिस्सों के समान पुलिस विभाग की और मुख्य मूल समस्या है। जीवन दिन-प्रतिदिन महँगा भी होता जा रहा । चारों ओर मानवता के आदर्श समाप्त हो रहे हैं । इस सबका प्रभाव पुलिस बल पर पड़ना स्वाभाविक है। यदि मैं पुलिस अधिकारी होता, तो इन सभी बातों का ध्यान रख, पुलिस वालों की मूल आवश्यकताओं की पूर्ति की उचित व्यवस्था कुछ इस प्रकार से करवाता कि उन्हें अनैतिक और भ्रष्ट लोगों के चंगुल में फँसने की आवश्यकता ही न पड़ती ! जो, हो, यदि मनुष्य अपने नैतिक मूल्यों, आदर्शों की रक्षा कर सके, तभी वह बाकी की रक्षा भी कर सकता है । इसी विश्वास को आधार बनाकर मैं पुलिस वर्दी पहन अपने वास्तविक कर्त्तव्यों का पालन करता !

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