मेरा परिवार – आत्मकथात्मक निबंध ( My Family – Autobiographical Essay )
परिवार शब्द का सामान्य अर्थ होता है, घर की एक ही छत के नीचे रहने वाले वे लोग, जो पति-पत्नी, माता-पिता, बहन-भाई आदि के रिश्ते-नाते के कारण आपस में जुड़े हुए हैं। उनका रहन-सहन, सुख-दुख आदि सभी कुछ साँझा है । इस सामान्य दृष्टि के अतिरिक्त एक व्यापक दृष्टि से भी परिवार का स्वरूप और परिभाषा बतायी जाती है। कहा जा सकता. है कि वह दृष्टि बड़े और व्यापक परिवार के स्वरूप और परिभाषा को बताती है। अर्थात् जिस देश, काल के समाज में हम रहते हैं, वह पूरा समाज भी हमारे परिवार के समान ही हुआ करता है। क्योंकि उस समाज में हम अपने रहन-सहन, खान-पान, सभ्यता-संस्कृति, रीति-नीतियों और भाषा आदि की दृष्टि से समान व्यवहार करते हैं, सभी प्रकार के उत्सव और त्योहार भी समान रूप से एवं मिल-जुलकर मनाते हैं । इस कारण हम अपने देश और उसके समाज नामक परिवार के सदस्य अपने-आप हो जाते हैं । एक तीसरे किस्म का भी परिवार होता है। उसके साथ हमारा कोई सीधा और स्पष्ट सम्बन्ध तो नहीं रहा करता, फिर भी उसकी सदस्यता से इन्कार कर पाना कतई सम्भव नहीं हुआ करता । उसे हम विश्व का मानव-समाज कहते हैं ! विश्व के सभी मनुष्यों की सुख-दुःख की भावनाएँ समान होती हैं, साँझी भी हुआ करती हैं। बाहरी रहन-सहन, रीति-रिवाज, खान-पान और भाषा आदि का भेद अवश्य हो सकता है, हुआ भी करता है, पर भावना के स्तर पर सब एक हुआ करते हैं। इस प्रकार मनुष्य होने के कारण हमारी स्थिति एक सामान्य और छोटे परिवार से निकल कर क्रम से बड़े होते जाते परिवार से जुड़ती जाती है । किन्तु यहाँ हमें ‘मेरा परिवार’ शीर्षक से जिस और जिस प्रकार के परिवार पर विचार करना है, वह पहले प्रकार का सामान्य परिवार ही है। अतः मैं उसी का परिचय दे रहा हूँ ।
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मेरा परिवार बड़ा ही छोटा या संक्षिप्त सा है । आजकल जिसे सन्तुलित परिवार कहा जाता है, मैं अपने परिवार को उसी प्रकार का मान और कह सकता हूँ। मेरे पिता, माता दो बहनें और भाई के रूप में एक मैं-बस, इतना-सा, अर्थात् कुल जमा पाँच सदस्यों का ही हमारा परिवार है। लगता है, हमारे माता-पिता ने परिवार कल्याण मंत्रालय के इस नारे का पालन किया है——दो या तीन बच्चे, सुखी जीवन, सुखी परिवार ।’ दूसरे शब्दों में, सरकारी घोषणापत्रों में जिस प्रकार के परिवारों की कल्पना की जाती है, जिस प्रकार के परिवार को अच्छा मान कर सन्तुलित कहा जाता है, मेरा परिवार बिल्कुल उसी प्रकार का अच्छा, छोटा और सन्तुलित परिवार ही है । हमारा परिवार सन्तुलित है, इस कारण हमारा परिवार सुखी भी है । सामान्य रूप से हमारे परिवार के किसी भी सदस्य को किसी इच्छापूर्ति. या वस्तु के लिए मन मार कर नहीं रहना पड़ता ! जैसे बड़े-बड़े परिवार अक्सर इच्छाएँ पूरी न हो सकने, अभाव और कष्ट होने का रोना रोते रहा करते हैं, अक्सर आपस में जरा-जरा-सी बात और चीज़ के लिए लड़ते-झगड़ते रहते हैं, उस प्रकार की स्थिति हमारे परिवार में कभी नहीं आती। सभी की उचित इच्छाओं और आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रयास किया जाता है ! इससे हम सभी बहुत खुश, आपस में मिल-जुलकर रहते हैं ।
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हमारा परिवार निम्न-मध्यवर्गीय परिवार ही कहा जा सकता है। आजकल के इतने महँगाई के जमाने में तीन-चार हजार मासिक आय वाले परिवार को उच्च वर्गीय तो क्या, मध्यवर्गीय परिवार तक नहीं कहा जा सकता ! निम्न-मध्यवर्ग का ही तो कहा जा सकता है। सो इतनी आमदनी में ही हमारे माता-पिता हम सभी सदस्यों की आवश्यकताओं का पूरा ध्यान रखते हैं । हम तीनों भाई-बहन स्कूल में पढ़ रहे हैं। मैं सबसे बड़ा हूँ, दसवीं कक्षा में पढ़ रहा हूँ । मुझसे तीन साल छोटी मेरी बहन मुन्नी है, जो सातवीं कक्षा की छात्रा है। उससे छोटा मुन्नू चौथी कक्षा में पढ़ता है। हम सभी पढ़ाई-लिखाई में ठीक-ठाक चल रहे हैं। अपने को बहुत अच्छे छात्र तो नहीं, पर घटिया या न पढ़ने वाले भी नहीं समझते। अपनी पढ़ाई की पुस्तकों, कापियों आदि को सँभाल कर रखते हैं। समय का सदुपयोग करते हैं। घर में तीनों भाई-बहन मिलकर स्कूल का काम करते हैं। उसमें एक-दूसरे की आवश्यकता का ध्यान रखते हैं, हर प्रकार से सहायता भी करते हैं। घर हो, बाहर हो या स्कूल हो, सभी जगह सबके साथ मिल-जुलकर रहते हैं । अच्छा व्यवहार करते हैं। इस कारण हमारे साथ भी सभी का व्यवहार अच्छा और स्नेहपूर्ण रहता है। हमारे अध्यापक भी पढ़ाई-लिखाई में हर प्रकार से सहायता पहुँचाते हैं ।
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मेरा परिवार जिस गली और मुहल्ले में रहता है, वहाँ प्रायः सभी लोग हमारे समान ही आर्थिक स्थिति वाले हैं। ऐसा होते हुए भी अक्सर वे लोग तरह-तरह के बनावटी व्यवहार, अनचाहे फैशन, एक-दूसरे की ही नहीं, अपने से बड़ों की नकल करने की कोशिश में लगे रहते हैं। इस कारण अक्सर हर महीने की पन्द्रह-बीस तारीख के बाद दुकानदारों से, दफ्तर वालों से, या एक-दूसरे से, उधार माँगते देखा जा सकता है। हर बात पर वे महँगाई का रोना रोते हुए देखे जा सकते हैं । गालियाँ दे देकर व्यवस्था को कोसते रहते हैं, पर अपनी ग़लतियों और कमियों को सुधारने की कोशिश कभी नहीं करते । जरा-जरा-सी बात पर आपस में तो लड़ने ही लगते हैं, आस-पड़ोस वालों से भी लड़ने लगते हैं ज़रा-जरा-सी बात के लिए बच्चों को डाँट फटकार देते हैं। उनकी पढ़ाई तक की आवश्यकताएँ पूरी करते समय रोते-झींकते रहते हैं । ऐसे लोगों के सामने न तो वर्तमान का सुख-चैन रहता है और न भविष्य की ही । कोई आशा रहा करती है । किन्तु हमारे घर-परिवार में ऐसी बातें नहीं हैं। आगे चलकर हम भाई-बहनों को क्या बनना और क्या करना है, हमारे माता-पिता हमारे मन में इसका अहसास अभी से कराते रहते हैं । हमें समझाते रहते हैं । यदि हम लोग कभी कोई ग़लती भी कर देते हैं, तो वे हमें डाँटते-फटकारते नहीं बल्कि प्यार से ग़लती के अच्छे-बुरे पहलू और परिणाम बताकर भविष्य में सावधान रहने की प्रेरणा देते हैं ।
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हमारा परिवार छोटा-बड़ा हर आवश्यक घरेलू कार्य आपस में विचार-विमर्श करके किया करता है, इस कारण किसी को किसी से कोई शिकायत नहीं रहती ! समय पर उठना, सुबह की क्रियाएँ और नाश्ता करना आदि से लेकर रात के सोने तक के सभी कार्य मिल-जुल कर करते हैं। घर में कोई सगा सम्बन्धी या आस-पड़ोस का मेहमान आ जाता है, तो उसे देखकर हमें माथा सिकोड़ लेने की जरूरत नहीं पड़ती। हम सब खिले माथे से मुस्करा कर उनका स्वागत करते हैं। किसी भी प्रकार के प्रदर्शन और औपचारिकता में न पड़कर अपनी हैसियत के अनुसार आने वालों का सत्कार करते हैं। याद रहे, हमारे साथ भी सभी का व्यवहार प्रायः इसी प्रकार का रहा करता है । फिर भी कुछ लोग हमारे व्यवहार को सनक या बनावट कहकर आपस में हमें लड़ाने की कोशिश करते रहते हैं, पर हम लोग ऐसों की कोई परवाह नहीं करते। ऐसों की तरफ ध्यान ही नहीं देते। यह सोचकर अपने व्यवहार को सन्तुलित बनाये रखते हैं कि सभी का अपना-अपना स्वभाव, चीजों को सोचने-समझने का ढंग हुआ करता है, सो करते-सोचते रहें !
सो कुल मिलाकर मैं कह सकता हूँ कि मेरा छोटा-सा परिवार एकदम वैसा ही है कि जिसकी कल्पना हमारे सांस्कृतिक ग्रन्थों में मिलती है । परिवार सन्तुलित है, प्रसन्न है । अपने कर्त्तव्य पालन में लगा है ! कोई कुछ भी कहता है, कहता रहे। हमारे व्यवहार में अन्तर नहीं आ सकता ।
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