एक अविस्मरणीय मैच A Match to Remember – Autobiographical Essay
मनुष्य के जीवन में ऐसा कुछ कई बार होता है, जिसे वह कभी भी भुला नहीं पाता ! फिर जिस मनुष्य की जैसी रुचि हुआ करती है, कभी-न-कभी उसके जीवन में उस रुचि से सम्बन्ध रखने वाली घटनाएँ भी अवश्य घट जाया करती हैं, कि जिन्हें भुला पाना कठिन तो क्या, प्रायः असम्भव ही हुआ करता है । बचपन से ही मेरी रुचि खेल-कूद में रही है। स्कूल में प्रवेश लेने से पहले मैं अपने आस-पड़ोस के बच्चों को इकट्ठा करके ही क्रिकेट, हॉकी आदि खेलों के मैच खेलने का अभिनय करता रहा । इससे कई बार तो मेरे और आस-पड़ोस के बच्चों के माता-पिता नाराज़ भी हो जाया करते । क्योंकि हमारे खेलों से घरों की खिड़कियों के शीशे टूट जाते, या और कुछ बिगड़ जाता, इस कारण उन लोगों का नाराज़ होना उचित और स्वाभाविक ही था । फिर जब स्कूल प्रवेश पा लिया, तो चौथी – पाँचवीं कक्षा में आ जाने के बाद तो मैं खुले रूप से स्कूल की टीमों का सदस्य बन कर खेलने लगा । आज भी मेरी रुचि वैसी ही बनी हुई है।
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आज मैं दसवीं/ग्यारहवीं कक्षा का छात्र हूँ । पढ़ने-लिखने में बहुत अच्छा न होने पर भी अच्छे अंक लेकर अपनी परीक्षाएँ पास करता आ रहा हूँ । खेलों में विशेष रुचि और दक्षता प्राप्त होने के कारण मुझे अपने स्कूल का हर विद्यार्थी और हर शिक्षक तो जानते ही हैं, जोन और ज़िला के स्कूलों के विद्यार्थी, अध्यापकगण भी मुझसे अच्छी तरह परिचित हैं। कम-से-कम खिलाड़ी छात्र और खेलों में रुचि रखने वाले छात्र – अध्यापक तो. जानते ही हैं। इसका एक प्रमुख कारण हॉकी का वह मैच भी है, जो मेरे ही कारण रोमांचक तो हो ही पाया, हमारे स्कूल की टीम ने जीत भी लिया । सचमुच, मेरे जीवन का अब तक का वह एक अविस्मरणीय मैच है। उससे पहले भी हमने कई मैच खेले और जीते थे, उसके बाद भी निरन्तर खेलते रहे और अक्सर जीत भी रहे हैं, पर जो गुदगुदी और रोमांच उस एक मैच का स्मरण आते ही होने लगता है, उसे शब्दों में बता पाना यद्यपि बड़ा ही कठिन कार्य है, फिर भी आपकी जानकारी और रोमांचकता के लिए बता रहा हूँ । सुनिये !
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तब मैं आठवीं कक्षा में पढ़ता था ! हमारे स्कूल में यों तो फुटबॉल, वॉलीबॉल, बास्किट-बॉल, क्रिकेट, हॉकी आदि प्रायः सभी आधुनिक खेल खेले जाते हैं, सभी के खेलने की उचित व्यवस्था और साधन भी हैं; पर जैसा कि मैं पहले भी कह आया हूँ, बचपन से ही मेरी रुचि सामान्य रूप से क्रिकेट और विशेष रूप से हॉकी खेलने की रही है पाँचवीं-छठी कक्षा में जब स्कूल – टीम में खेलना शुरू किया, तभी से अच्छा खिलाड़ी माना जाने लगा। फिर लगातार के अभ्यास से मेरा खेल और भी निखर कर अच्छा होता गया । इस कारण मेरा चुनाव तभी उस टीम के खिलाड़ी के रूप में हो गया, जिसे जोन और ज़िला स्कूलों के वार्षिक टूर्नामैण्ट में भाग लेना होता था ! हर बार, हर मैच में मेरा प्रदर्शन अच्छा रहा। स्कूल से शाबाशी तो मिली ही, कई मैडल, कप और उपहार भी पुरस्कार स्वरूप प्राप्त होते रहे ! इस कारण समय ठीक ही बीतता गया। फिर मैं अपने साथ के अन्य खिलाड़ियों के समान पढ़ाई-लिखाई में फिसड्डी न था, अध्यापकों को ग्रेस मार्क देकर मुझे पास नहीं करना पड़ता था, इस कारण भी सभी मेरे प्रशंसक थे । शाबाशी देते रहा करते थे ! जो हो, बात आठवीं कक्षा के समय होने वाले टूर्नामैण्ट की है !
वार्षिक टूर्नामैण्ट के लिए हमारी टीम नित्य-प्रति अभ्यास करने लगी । अन्त:कक्षा मैच भी होते रहते थे, ताकि यदि कोई और अच्छा खिलाड़ी दिखाई दे, जो उसे भी टीम के लिए चुन लिया जाये । दैवयोग से इस बार टीम के चुनाव और अभ्यास मैच शुरू होते ही मैं बीमार पड़ गया ! बीमारी कुछ लम्बी खिंच गयी, इस कारण मैं अन्त:कक्षा और अभ्यास-मैचों में भाग नहीं ले सका। क्योंकि इस बार ज़िला टूर्नामैण्ट के फाइनल में हमारी स्कूल टीम की जिस टीम से भिड़ने की सम्भावना थी, पिछले कुछ वर्षों से उसका काफी नाम हो रहा था ! मुझे एक-दो बार उसके साथ खेलने का अवसर भी मिल चुका था, इस कारण प्रायः सभी साथी खिलाड़ी और अध्यापक चाहते थे कि मैं इस बार भी टीम में अवश्य रहूँ । इस कारण मेरी बीमारी ने सभी को चिन्ता में डाल दिया ! मैच और टूर्नामैण्ट के दिन तो नज़दीक आते गये, पर मैं पूरा स्वस्थ होकर अभ्यास में भाग नहीं ले सका ! इस कारण अन्त में जिस हॉकी-टीम का चुनाव हुआ, उसमें मेरा नाम नहीं था ! इससे मुझे बहुत धक्का लगा ! मैंने जाकर टीम के प्रशिक्षक अध्यापक महोदय से बहुत कहा कि मेरी बीमारी तो अब ठीक हो चुकी है, कुछ कमजोरी है, मैच शुरू होने के दिन तक वह भी दूर हो जायेगी । मैं आज से ही अभ्यास शुरू कर देता हूँ, पर नहीं । अभी मैं बहुत कमज़ोर लग रहा था, सो मेरी बात नहीं मानी गयी। मुझे मन मारकर रह जाना पड़ा। अभ्यास करने का प्रश्न ही नहीं उठता था !
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आखिर ज़िला टूर्नामैण्ट आरम्भ हुए। हमारी टीम अच्छी थी, सो वह पूरक मैच जीतती हुई सेमी फाइनल और फिर फाइनल में पहुँच ही गयी । मेरा नाम यद्यपि टीम के पूरक खिलाड़ियों में भी नहीं था, फिर भी मैं अपने स्कूल टीम द्वारा खेले गये हर मैच के समय दर्शक बनकर मैदान में उपस्थित अवश्य रहता ! जब मैं अपनी या दूसरी टीम के किसी खिलाड़ी को ग़लत खेलते हुए देखता, तो मेरा मन उत्तेजित होकर रह जाता, पर खीझने के सिवा कुछ भी कर पाना मेरे लिए कतई सम्भव नहीं था, सो खीझ कर रह जाता ।
आखिर फाइनल मैच आरम्भ हुआ ! हमारे स्कूल की टीम के सामने वही टीम थी, जिसकी सबको पूरी सम्भावना थी । इस कारण मैच बहुत रोचक होगा, सभी कह रहे थे ! जो हो, रेफरी की सीटी के साथ मैच आरम्भ हो गया। दोनों टीमों के सधे हुए खिलाड़ी अपनी जीत के लिए जी-जान से जुट गये। कड़ा संघर्ष होने लगा ! लेकिन यह क्या ? कौन गिरा ? अरे, यह तो हमारी टीम का ही एक खिलाड़ी था जो ठोकर खाकर गिरा; पर अब लँगड़ाते हुए मैदान से बाहर लाया जा रहा था । उसके स्थान पर रेफरी का इशारा पाकर एक पूरक खिलाड़ी आ गया ! मैच जहाँ जिस स्थिति में रुक गया था, वहीं से शुरू हो गया ! दोनों टीमें फिर गैंद पर मारा-मारी करने लगीं और यह — यह गोल ! विरोधी टीम के सेण्टर फारवर्ड खिलाडी ने हमारी टीम पर बड़ी सफाई से एक गोल दाग दिया ! कुछ क्षण बाद दूसरा गोल आरम्भ हुआ। देखते-ही-देखते हमारी टीम का एक ऐसा खिलाड़ी गिर पड़ा, जिसे मेरे बाद सबसे अच्छा माना जाता था ! उसे भी बाहर आना पड़ा। एक और पूरक खिलाड़ी आया, पर अब लग रहा था कि हमारी टीम का ध्यान भंग हो गया है, उत्साह जाता रहा है। वह केवल खानापूर्ति के लिए ही खेल रही है कि तभी एक और खिलाड़ी चोट खा गया। उसे भी बाहर लाया गया, पर अब पूरक खिलाड़ी के रूप में समस्या उठ खड़ी हुई। क्योंकि और किसी को पूरक बनाकर लाया ही नहीं गया था ! तभी टीम-कप्तान ने हमारे खेल – प्रशिक्षक के कान में कुछ कहा और वे वहीं से पुकारते हुए मेरे पास आ गये। बोले, उठो! अब स्कूल की लाज तुम्हीं ने बचानी है । परन्तु मैं तो अपनी हॉकी भी लेकर नहीं आया था ! जो हो, प्रशिक्षक महोदय ने एक हॉकी मेरी तरफ बढ़ा दी और एक अनजाने उत्साह से भरकर मैं मैदान में उतर पड़ा !
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खेल शुरू हुआ। दो-चार क्षण बाद ही मैंने तेज़ी से झपट गैंद विरोधी दल के गोल में फेंक दी ! टीम के साथियों ने भाग कर मुझे कन्धों पर उठा लिया। इसके तीन-चार मिनट बाद जैसे मैंने गैंद विरोधी टीम की गोल में फेंकी, रेफरी ने लम्बी सीटी बजाकर खेल का समय समाप्त होने की घोषणा की। मैं समझ ही नहीं पा रहा था कि लगातार दो गोल करके अपनी टीम को जीत दिलाने में सफल कैसे हो गया? मैंने तो पिछले कई दिनों से बीमारी और टीम में न चुने जाने की निराशा के कारण अभ्यास तक नहीं किया था ! मैं सोच ही रहा था कि टीम के साथी आकर मुझे उठा नाचते-कूदते मैदान से बाहर ले चले ! अब आप ही कहिए, मेरे लिए इससे अधिक रोमांचक और अविस्मरणीय मैच और कौन-सा हो सकता है?
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